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ये कहानी है उत्तर प्रदेश के उस मुख्यमंत्री की… जिसके बुलडोज़र एक्शन ने अपराधियों की कमर तोड़ दी

Sunday, October 5 | October 05, 2025 WIB Last Updated 2025-10-05T18:58:55Z

 ये कहानी है उत्तर प्रदेश के उस मुख्यमंत्री की… जिसके बुलडोज़र एक्शन ने अपराधियों की कमर तोड़ दी… जिनके नाम से आज भी अपराधी खौफ़ में रहते हैं। ये कहानी है… Yogi Adityanath की !" ये कहानी है योगी के बुलडोज़र एक्शन की ? लेकिन अब इसी बुलडोज़र एक्शन ने देश की सियासत से लेकर सुप्रीम अदालत तक एक नयी बहस छेड़ दी . बहस इस बात की क्या ‘बुलडोज़र एक्शन के नाम पर अपराधियों को नहीं ... बल्कि निर्दोशो को निशाना बनाया जा रहा है ? क्या योगी सरकार खुद एक साथ जज, जूरी और जल्लाद बन चुकी है ... या फिर ये नारेटीव अपारधियों को बचने का नया तरीका है ? 

2017 में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों को साफ संदेश दिया था —की “या तो अपराध छोड़ दो, या उत्तर प्रदेश छोड़ दो।”और उसके बाद अपराधी थाने जाकर खुद सरेंडर करने लगे थे ...पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, 2022 से 2025 तक यूपी में 2500 करोड़ से ज्यादा की माफिया संपत्तियाँ जब्त हुईं और 6000 से अधिक अवैध निर्माण ध्वस्त किए गए।


 प्रयागराज में अतीक अहमद के गैंग की इमारतों से लेकर मऊ में मुख्तार अंसारी के अवैध कारोबार तक, बुलडोज़र ने हर जगह खौफ़ फैलाया।.. बुलडोज़र अब कानून का हथियार नहीं, बल्कि अपराधियों के लिए डर और जनता के लिए भरोसे का प्रतीक बन चुका था.. अब बुलडोज़र एक्शन सिर्फ यूपी  तक सिमित नहीं रहा इसकी डिमांड पूरे देश बढ़ गयी ...  लेकिन जितना इसका अपराधियों में  खौफ है  .. उतना ही इसका अदालत से लेकर सडक तक विरोध भी था ... इसलिए नहीं की अपराधियों पर चल रहा है ... बल्कि इसलिए क्योकि इसमें तुस्टीकरण दीखता है .. और वोट की राजनीति भी ....लेकिन सिर्फ नेतोनों तक सिमित रहता तो भी सही था अब तो ये .. अदालतों के फैसलों , जजों की तीखी  बयानों में बदल गया है ...  


 जब संभल में अपराधियों की अवैध इमारतों पर बुलडोज़र चलाता है  तो कोर्ट  तुरंत दखल देता है। लेकिन जब यही दंगाई .. सडको पर उत्पात मचाते है ... करोडो की सम्पति को जलाकर खाक कर देते है ... तब कोर्ट से याचिकाए ख़ारिज हो जाती है ?? मुंबई बम धमाकों के आरोपी याकूब मेमन जैसे अपराधियों की फांसी से पहले,रात 3:15 बजे सुनवाई  होती है ?   लेकिन जब एक  टूटी भगवन की मूर्ति  के जिर्नौधर के लिए याचिका दाखिल की जाती है .. तो उसे यह कहकर  खारिज कर दिया जाता है की  'जाओ और भगवान से कहो कि वे खुद बदल दें। ....  तो क्या ये  मान लिया जाये की क्या न्यायपालिका कभी‑कभार selective या subjective टोन में बोलती है — और क्या सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्ति सार्वजनिक बहसों में अधिक सक्रिय हो


आज जब  बरेली में दंगाइयों की अवैध संपत्तियों को गिराने की कार्रवाई शुरू हुई,तो  फिर से चीफ जस्टिस का बयान सामने आ गया। चीफ जस्टिस बी.आर गवाई ने  कहा—‘बुलडोज़र एक्शन का मतलब कानून तोड़ना है। सरकार एक साथ जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती।’ ऐसे में सवाल यह है—क्या योगी सरकार अपराधियों की कमर तोड़ रही है, या अदालत के मुताबिक कानून की प्रक्रिया तोड़ रही है क्या योगी का बुलडोज़र मॉडल अपराधियों की कमर तोड़ रहा है या संविधान की हदें लांघ रहा है?   




यूपी में बुलडोज़र अब सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि “योगी मॉडल” का प्रतीक बन चुका है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट बार-बार इसे न्यायिक प्रक्रिया से बाहर का रास्ता बता रहा है। यही टकराव आज चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा है।  नवंबर 2024 में  चीफ जस्टिस गवई और जस्टिस विश्वनाथन की बेंच ने कहा था —“सरकार अपराधियों से निपटे, लेकिन अफसर जज नहीं बन सकते। दोषी कौन है, यह अदालत तय करेगी।”


  सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद योगी आदित्यनाथ ने कहा—था “हम कोर्ट का सम्मान करते हैं, लेकिन यूपी में अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं। बुलडोज़र अब भी चलेगा, लेकिन कानून  के दायरे में ।” योगी मॉडल अब Zero Tolerance on Crime + Full कम्प्लायंस with Law के सिद्धांत पर काम कर रहा है। योगी का कहना है—“अपराधी कितना भी बड़ा हो, छोड़ा नहीं जाएगा। लेकिन निर्दोष को कोई नुकसान नहीं होगा।”


आज बुलडोज़र यूपी की राजनीति और प्रशासन का चेहरा बन चुका है। योगी आदित्यनाथ अपराधियों के खिलाफ इसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि , सुप्रीम कोर्ट बार-बार याद दिला रहा है कि बुलडोज़र तभी चलेगा जब कानून और संविधान का पालन होगा। संभल, प्रयागराज और अब बरेली की घटनाओं ने इस टकराव को और गहरा बना दिया है। एक तरफ योगी कहते हैं—“कानून से बड़ा कोई अपराधी नहीं।” दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट का संदेश है—“कानून से बड़ा कोई प्रशासन नहीं।


”यह लड़ाई दरअसल दो सिद्धांतों की है—एक तरफ अपराधियों के खिलाफ त्वरित ऐक्शन,की है  और दूसरी तरफ  सैमवैधानिक की प्रक्रिया की । बुलडोज़र अब सिर्फ मशीन नहीं, बल्कि राजनीति, न्याय और जनता के भरोसे का प्रतीक बन चुका है। भले चीफ जस्तिश आर्टिकल २१ का  उलंघन कह रहे है ... भले ही कोर्ट बार बार कह रही है  न्याय केवल अदालत से मिलेगा, न कि प्रशासनिक फैसलों से।  लेकिन फिर भी बुलडोज़र अपराधियों के सीने आज भी उसी  रफ़्तार से दौड़ रहा है ... बदल है तो सिर्फ .. एक्शन का तरीका ? वैसे आपकी राय क्या है इसे लेकर लिखकर बता सकते है 


 



 


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